बेबस-बेरोजगार देश, बढ़ता खजाना और नॉन सीरियस भारतीय  विजया पाठक

बेबस-बेरोजगार देश, बढ़ता खजाना और नॉन सीरियस भारतीय
 विजया पाठक


भोपाल  जैसे कि मैंने अपने पिछले लेख में सी.एम.आई.ई के डाटा से बताया था कि इस देश में लोक-डाउन के शुरुवाती 2 हफ्तों में करीब 12 करोड बेरोजगार बढ गये और इफेक्टिव बेरोजगार आबादी करीब 25 करोड़ के लगभग हो गयी है, इफेक्टिव बेरोजगार आबादी मतलब इन 12 करोड बेरोजगार मे से 8 करोड बेरोजगार अपने परिवार के 
एकल कमाई वाला सदस्य है मतलब इफेक्टिव बेरोजगार आबादी देश मे कुल 25 करोड़ के लगभग है। सी.एम.आई.ई के ताजा आंकड़े आने के बाद यह स्थिति और भयावह दिखती है, आंकडो के हिसाब से अब देश में करीब-करीब 14 करोड़ बेरोजगार हो गए हैं और इफेक्टिव बेरोजगार आबादी कुल 30 करोड़ के लगभग हो गयी है। मध्यमवर्गीय की स्थिति तो देश में पहेले से ही खराब थी अब असंगठित मजदूर वर्ग भुखमरी के दौर में पहुंच गया है। स्थिति और खराब दिखती है जब करीब-करीब 11 करोड़ गरीब जनता पीडीएस की लिस्ट से बाहर है अर्थात उन्हें मुफ्त मे अनाज नहीं मिल सकता।  सरकार अपने स्तर पर काम कर रही है सच है भी करोना उनकी देन तो नहीं पर इससे निपटने का कार्य उनका है।  RBI से एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आयी है जिसमे इस समय भारत का फोरेक्स रिजर्व 3.1 बिलियन डॉलर से 479.6 बिलियन डॉलर, विदेशी करेंसी 1.6 बिलियन डॉलर से 441.9 बिलियन डॉलर, एस.डी.आर. 3 मिलियन से 1.4 बिलियन डॉलर और गोल्ड रिजर्व 1.50 बिलियन डॉलर से 326.8 बिलियन डॉलर पहुंच गया है (साभार: https://www.rbi.org.in/Scripts/BS_PressReleaseDisplay.aspx?prid=49719)। साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाज़ार मे कच्चा तेल की कीमत पानी के बराबर हो गयी है और रबी की बम्पर फसल आ चुकी है। सरकार भी भारी खर्च-कटौती पर उतर गयी है। यह सब दिख तो बढ़िया रहा है पर सिर्फ 'दिख' ही रहा है अंदर की स्थिति अलहदा है? देश कि एक चौथाई आबादी के पास रोजगार का कोई साधन नहीं रहा है। जो असंगठित मजदूर वर्ग अभी शहर में टीका हैं बस राम-नाम जप कर समय काट रहा हैं, की बस भुखमरी से बच जाए और लोक-डाउन खत्म होते ही अपने गांव चले जाए।  यह वर्ग जल्द ही वापस काम पर आता दिख नहीं रहा है। अब देश के पास पैसा है, अनाज है तो क्यों ना इनका मुंह सबके लिए खोल दिया जाए पीडीएस के चक्कर में ना पढ़कर सबको अनाज पहुंचा दिया जाए ताकि कोई भी भुखमरी से ना मरे। रबी की बंपर फसल खडी है उसका भंडारण की व्यवस्था देश मे नहीं है तो क्यों ना इस अनाज सड़ने की जगह सबके लिए खोल दिया जाए ताकि कोई भी भूखा ना रहे करोना के साथ-साथ भूखमरी पर भी जीत आवश्यक है। 
अब बात मेरे शीर्षक के दूसरे भाग की "नॉन सीरियस इंडियन" इसको मैंने बड़े खट्टे दिल से लिखा है।  इस हफ्ते देश में दो साधुओं की मॉब लिंचिंग हुई निंदनीय है पर इसे देश के हर ज़रुरी मामलो से उपर रखा जाये यह जायज़ नहीं।  बात अर्नब की नहीं, बात सोनिया गांधी के अपमान की नहीं, बात 101 FIR की नहीं, बात सुप्रीम कोर्ट से राहत की नहीं बात 'बात का बतंगड़' बनाने की है। जहां भूखमरी, बेरोजगारी, करोना जैसे मुख्य मुद्दे हैं उनके बीच में सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इन बातों को इतना कवरेज मिलना सही नहीं दिखता। क्या वाकई में हम नॉन सीरियस हो गए हैं कोविड-19 के आंकड़े गिन-गिन कर, घर में बैठकर क्या हम नॉन सीरियस हो गए हैं? महोदय जंग तो अभी बाकी है देश को लड़ना है क्या अभी से सरेंडर कर दें। और बात सरकार की शाबाशी की तो वह समय अभी नहीं आया है सरकार से ऐसे अप्रत्याशित समय में अप्रत्याशित कदम वांछनीय हैं।


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