हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 91 = स्वराज्य निर्माण की शपथ

 हिन्दवी स्वराज्य स्थापना का 350 वां वर्ष श्रृंखला 91 =  स्वराज्य निर्माण की शपथ


बीजापुर में स्वकीय सरदारों की, स्वधर्म, स्वभाषा, स्वसंस्कृति एवं स्वजनों की स्थिति देखकर शिवबा का मन बेचैन हो उठाl शहाजीराजे ने जिजाबाईसाहेब, शिवबा एवं दादाजी कोंडदेव  को  पुणे भेजने की तैयारी कीl  हाथी,घोड़े,खजाना, अद्वितीय निष्ठावान सेवक, पेशवा, मुजुमदार, डबीर, सबनिस, मजालसी बक्षी सब ओहदेदार दियेl साथ में  भगवा ध्वज दिया ।

पंत फिरसे युवा होकर काम में जुट गयेl शिवबा को साथ लेकर मावळ प्रान्त में घूमने लगेl पहाड़ों पर, जंगलों में घूमकर शिवबा जानकारी एकत्रित करता थाl आदमी के गुण- दोषों को पहचानता थाl वर्तमान परिस्थिति कैसी है यह जान गया थाl  आते-जाते लोग एवं बच्चें उसकी तरफ देखते थे, वह भी हँसकर बात करता था, उन्हें अपने पास बुलाता थाl यह रहवासियों के लिए नयी एवं सुखद अनुभूति थीl शिवबा के उस मीठी मुस्कान से किसानों के बच्चे खुशी से झूम उठते थेl ऐसा करते-करते उन सबसे कब दोस्ती हुई पता ही नहीं चलाl तान्हाजी,सूर्याजी,येसाजी, बाजी, बापूजी, त्रम्बक, चिमणाजी, बाळाजी, दादाजी व सबसे उम्रदराज साथी बाजी पासलकर l

सभी साथी लाल महल आने लगेl वहाँ का वातावरण बहुत प्रसन्न थाl धर्मनिष्ठित एवं ममतामयी माँसाहेब व दादाजी कोंडदेव का अनुशासनl इससे उन्हें अपनापन लगने लगा l

इन साथियों के साथ घुडसवारी करना, पहाड़ों के मार्ग, गुंफाएँ, घाटीयाँ, खाईयाँ ढूंढना ऐसे कार्य होने लगेl सभी साथी शिवबा से भक्ति करने लगे, उसे अपना सर्वस्व मानने लगेl घरबार भी भूल गये, कलेजा काटकर देने के लिए भी तैयार थेl रात-बेरात शिवबा जहाँ जाएगा वहाँ जाने लगेl जो महा भारत माँसाहेब एवं शिवबा ने सोचा था वह अब इन दोस्तों के मनःपटल पर आकार लेने लगाl बादशाही शासन के प्रति उनके मन में घृणा निर्माण हुई, बादशाह राक्षस प्रतीत होने लगा तथा  शिवबा       ' शिव का अवतार ' l तुळजाभवानी के प्रति शिवबा की निष्ठा देखकर उन्हें लगता भवानी की शिवबा पर कृपादृष्टी है, वह प्रसन्न हैl इसका परिणाम यह हुआ कि उनके मन में बादशाह का डर खत्म हुआ, उन्होंने तय किया अब राज्य करना है तो शिवबा का!इसके लिए प्राणों की आहुति देनी पडे तो भी चलेगाl उन्होंने आपस में कसम खायी कि बादशाही को उड़ाना है l

देवदर्शन के लिए वे सभी आळन्दी, जेजुरी, मोरगाव जातेl भूख-प्यास भूल जाते व मौसम की भी परवाह नहीं करते थेl पुणे के आसपास के सभी गढ़-दुर्गों की जानकारी वे एकत्रित कर रहे थेl इसी दरमियान शिवबा की अष्टकोणी मुद्रा भी तैयार हुई l

पुणे के दक्षिण दिशा में 50 मील की दूरी पर भोर तहसील में रोहिडेश्वर का प्राचीन मंदिर है, स्वयंभू शिवलिंग हैl सह्याद्री के दुर्गम शिखरों पर झाड़ियों के मध्य मंदिर हैl अत्यंत पवित्र व शांत स्थान होने के कारण शिवबा अपने साथियों के संग वहाँ दर्शन करने जाता थाl वहाँ शिवबा ने दादाजी नरसप्रभु गुप्ते के साथ मिलकर पूजन की व्यवस्था प्रारम्भ करवा दी - दि.26 मई 1642, शिवा जंगम की पुजारी के रूप में नियुक्ति हुई l

एक दिन सभी साथियों को लेकर शिवबा रोहिडेश्वर मंदिर में गयाl पुजारी जी ने पूजन किया, शिवबा ने साष्टांग दंडवत कियाl दादाजी नरसप्रभु, शिवाजीराजे व अन्य साथियों ने अपने हाथ शिवलिंग पर रखें, एक घोष हुआ " शम्भो हर हर महादेव " सबने कहा " हे महादेव आज आपके समक्ष हम हिन्दवी स्वराज्य स्थापना की शपथ ले रहे हैं l  संकल्प पूर्ण करने के लिए आप सर्वशक्तिमान हो!जब तक स्वराज्य निर्माण का पावन कार्य पूर्ण नहीं होगा तब तक ये हाथ आपस में मिले रहेंगे, छुटेंगे नहीं,हम वचन पूर्ण

करेंगेl " इतना कहकर शिवाजीराजे ने पिंडी पर चढ़ाया हुआ बेलपत्र उठाकर माथे से लगाया, श्रीफल का प्रसाद बांटा गया l मंदिर के प्रांगण में अन्य साथी भी हर्षविभोर

थे l

सन्दर्भ -- राजा शिवछत्रपति

लेखक -- महाराष्ट्र भूषण व पद्म विभूषण बाबासाहेब पुरंदरे

संकलन -- स्वयंसेवक एवं टीम

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